Sunday, May 6, 2007

किसकी मकड़ी?

तो आते जाते सहेबान और मैडम लोग...

एक कहानी सुनेंगे?
मकड़ी की ज़ुबानी सुनेंगे?

तो सुनिये ...

आजकल मकड़ी-लोक में बहुत शोक का माहौल है| कल ही हमारी चौपाल थी, और मुखिया जी ने बोला - हमारी नाक कट गयी है| कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा!!

आप पूछेंगे क्यों - तो सुनिये ... गौर से

पहले ज़माने की बात है - हम मकड़ियों से सारा संसार डरता था| हम जिस दीवार पर होते थे, उस के आस पास बच्चे आने से डरते थे| अंग्रेजी में कविताएं भी थीं हमारे बारे में (वोह छोटी मफ्फेट की कविता भूल गए? क्या मस्त डराया था उसे)|

सिर्फ किताबों में ही नहीं, पिक्चरों में भी हमारा बहुत नाम था, खासकर रामसे बंधुओं की खौ़फ़नाक फिल्मों में| जहाँ मकड़ी देखी - वहाँ हिरोइन की चीख निकली - वाह वाह, क्या दिन थे वो भी|

हाँ, बीच बीच में कभी कभी उस बिल्ली ने हमारे भाई-बहनो के साथ बदतमीजी की, लेकिन ऊपरवाले की दया से हमारे नाम पर बट्टा नही लगा|

लेकिन एक वोह ज़माना था, और एक आज का ज़माना है - कल मुझे देख कर एक बच्ची बोली
"देखो माँ, मकड़ी!!"

मैं अपने डरावने स्वरूप पर खुश हो ही रही थी की मैंने उस लकड़ी की आवाज़ फिर से सुनी
"मम्मी, मैंने फिल्म में देखा है - वो लड़का मकड़ी के काटने से बहुत शक्तिशाली हो गया - और दुनिया का रक्षक बन गया| मुझे भी बनना है दुनिया-का-रक्षक| मुझे मकड़ी से क्टवाओ ना!"

मैंने भागने की बहुत कोशिश की की, लेकिन उस लडकी ने मुझे पकड़ लिया, और कहा
"मेरी मकड़ी, तुम घबराओ नहीं, मैं तुमको माइक्रोवेव ओवन में डालूंगी, और फिर तुमसे कटवाऊंगी, जैसे पीटर पार्कर ने किया था! (शायद विकिरण से ज्यादा ही लगाव था उस लडकी को) "

मैं स्पाइडर मैन को गालियाँ दे ही रही थी की बिजली-मंत्रालय की कृपा से बत्ती गुल हो गयी। मैं जैसे तैसे कर के उस ओवन से बाहर आई, और अपने जाल की ओर भाग निकली।

तो साहेबान, मेहरबान, कदरदान, अब उस टोबी बन्दे का कुछ करना होगा। अगर आपको कल के अखबार में यह खबर दिखे की अमरीका के हीरो के घर मकड़ियों का हमला, तो यह ना कहना की मीनू मकड़ी ने पहले से नहीं बताया था।

अब मैं जाती हूँ। हौलीवुड की उड़ान पकड़नी है हमारी पूरी बस्ती को - आख़िर इज़्ज़त का सवाल है!

अतिथि नुक्कड़-कलाकार,
मीनू मकड़ी

1 comment:

Neha said...

yeh khel to bahut mazedaar hai...aisa khaila dekhe hue to jamana beet gaya